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Salil Saroj

Abstract

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Salil Saroj

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फरिश्ता

फरिश्ता

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कल देखा था आंख भर के उसे,

शरमा के दुपट्टे में सिमट गई होगी।


वो इंसान के शक्ल में फरिश्ता थी,

कुरान पढ़ के राम से लिपट गई होगी।


मैंने चाहा है तुम्हें इस कदर,

तुम में खोके मेरी हस्ती मिट गई होगी।


समंदर भी कम था पीने को जिन्हें,

आँखों से पीके प्यास घट गई होगी।


इतराते बहुत थे जवानी पे अपने,

माँ का बुढ़ापा देख के आँखें फट गई होगी।


जिन्हें छोड़ के जाना था ,चले गए,

मेरी, तुम्हारी यादों में उम्र कट गई होगी।


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