कभी तो वो तरसेंगे मेरे लिऐ
कभी तो वो तरसेंगे मेरे लिऐ
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अमूक,
उसे निहारता रहा
लब सिल गऐ
मेरी ख़ामोशी को
बेरूख़ी समझ
बढ गऐ
वे अकेले
थाम लिया
दूसरे का दामन
तन्हा रह गया
मैं अकेला
मेरी आशिकी के किस्से,
बंद रह गऐ ,
मेरी डायरी में
घरवाली ने रद्दी समझ,
बेच डाला,
कौड़ियों के मोल।
आवाक् हो
सिर्फ़ "उफ्फ "कह सका
कमबख़्त,
दोषी तो मेरा दिल था।।
किस्मत ने,
रूबरू कराया उनसे,
जिन्हें फुर्सत न थी,
मेरे दबे एहसास को जगाने की।।
काफ़ूर हो गऐ
एहसास मेरे
बैठा हूँ,
आस लिऐ
कमबख़्त,
कभी तो वो तरसेंगे मेरे लिऐ ।।