बस इंसान बन जाना चाहती हूँ
बस इंसान बन जाना चाहती हूँ
दीया बनने की ख्वाहिश नहीं,
बस खुद को जला कर,
उजियारा भर देना चाहती हूँ ।
सितारा बनने की ख्वाहिश नहीं,
बस अपनी टिमटिमाती रोशनी से,
उस आसमान को सजा देना चाहती हूँ ।
पेड़ बनने की ख्वाहिश नहीं,
बस झुलसती धूप सहकर भी,
ठंडी छाँव बिखेर देना चाहती हूँ ।
नदी बनने की ख्वाहिश नहीं,
बस खुद बह कर भी,
सबको तृप्त कर देना चाहती हूँ ।
पक्षी बनने की ख्वाहिश नहीं,
बस अपने पंखों से,
उन बादलों को छू लेना चाहती हूँ ।
अभिनय करने की ख्वाहिश नहीं,
बस इन उतार-चढ़ाव के संग,
अपनी भूमिका निभा लेना चाहती हूँ ।
शिल्पकार बनने की ख्वाहिश नहीं,
बस इन औजारों से,
खुद को तराश लेना चाहती हूँ ।
तस्वीर बनाने की ख्वाहिश नहीं,
बस इन आड़ी-तिरछी रेखाओं से,
खुद को उकेर लेना चाहती हूँ ।
कहानी लिखने की ख्वाहिश नहीं,
बस कोरे कागजों पर,
अपनी ज़िन्दगी लिखना चाहती हूँ ।
कविता लिखने की ख्वाहिश नहीं,
बस इसके लय में अपने जज़्बातों को,
समेट लेना चाहती हूँ ।
महान बनने की ख्वाहिश नहीं,
बस इंसानियत को समेटे,
इंसान बन जाना चाहती हूँ ।
ज़िन्दगी जीने की ख्वाहिश भी नहीं,
बस सुलगते जज़्बातों की आंच में,
तजुर्बों को ज़रा और पका लेना चाहती हूँ ।
बस इंसानियत को समेटे,
इंसान बन जाना चाहती हूँ ।