क्या करें
क्या करें
तू छोड़ गया जिस घर में मुझे
अब उस घर का क्या करें
तू था तो था ये मंदिर, मस्जिद, अब खुदा नहीं
तो इस दर का क्या करें
कैसे महफूज़ रहे तुझ बिन, इस ज़माने में
मुझे ताकती इन नज़रों से,
डर का क्या करें
तू जब सिकंदर ही न रहा मेरी मोहब्बत का
इन हाथों में लिखे मुकद्दर का क्या करें