मैं प्रेम में हूँ
मैं प्रेम में हूँ
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मैं डूब रहा हूँ
और पा रहा हूँ प्राण
मैं प्रेम में हूँ .
हवा सुलगा रही है आग
और भस्म हो रहा है हरा-भरा बाँस-वन
मैं प्रेम में हूँ .
नदी भाग रही है
आतुरता बड़ी है , मिलना है समुद्र से
बीच में काटे हैं , पत्थर हैं , खाप पंचायतें हैं
मैं प्रेम में हूँ .
पृथ्वी बहका रही है मुझे
और वस्त्र जो हरे हैं मेरे , हरा रहे हैं मुझे
मैं प्रेम में हूँ .
सूर्य की क्या कहूँ ?
और कि बेहद कठिन है कहना कि देह है सूर्य
मैं प्रेम में हूँ .