स्मृतियों के पार
स्मृतियों के पार
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क्या भूलें हम क्या याद करें?
कुछ खातिरदारी के गम में
कुछ लम्बरदारी के वश में।
कुछ टूट चले, कुछ छूट चले,
मन से रीते कुछ पर-वश में।
कर नये रूप का आस्वादन,
क्यों समय कहो बरबाद करें?
क्या भूलें हम क्या याद करें ?
वो यादें इतिहास बताती हैं,
जो केवल दिल में रहती हैं,
उनसे कुछ हाथ नहीं लगता,
जो केवल दुख में पलती हैं।
ये है उजास का आह्वान,
आओ इसको आबाद करें...
क्या भूलें हम क्या याद करें ?
अब नहीं मिलन का समय कहीं
है छल प्रवंचना घोर यहीं
इस वाक् जाल की जंजीरें
हम तोड़ चलें उस पार कहीं
उन यादों का कठिन साथ
हम चाहें न फरियाद करें?
क्या भूलें हम क्या याद करें...