बेटियाँ
बेटियाँ
मुश्किल से आती है,
परियां यहाँ,
फिर भी क्यों,
रहती हैं खामोशियाँ ।
पल-पल करती है,
वो कोशिश यहाँ,
फिर भी क्यों,
हारे वो ही सदा ।
बांटे वो खुशियाँ,
अपनी भी हँस के,
फिर भी नहीं हैं,
सब अपने उसके ।
कर देगी प्रकाश,
अंधेरे में भी वो,
फिर चाहे खुद को,
जलाना भी हो ।
पूरे कुल को,
महका देगी वो,
बस एक बार,
जीने का मौका तो दो ।