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Bhavna Thaker

Drama

5.0  

Bhavna Thaker

Drama

मिलना अगले जन्म

मिलना अगले जन्म

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839


तुम बेमौसम बरसात से

ज़िंदगी की शाम

ढलने की कगार पे मिले..!


एक क्षितिज है मेरे जीवन की,

दोहरी राह पर मैं खड़ी,

कैसे थामूँ डोर,

तुम अलख जगाके मत बैठो

झोली में इंतज़ार लिए मेरा...!


सुस्ताना चाहूँ भी कुछ लम्हें

पर है कहाँ इजाज़त

संजोग से परे क्षितिज के उस पार

तुम्हारे आसमान में कदम।


रखने को जी चाहे

मूर्त पड़े अहसास को

टटोलकर जगाऊँ कैसे..!


एक बंदिश में बंधी एक काम करो,

ख़्वाबगाह में आओ

कभी एक नवयौवना को पाओगे ..!


तुम्हारा हाथ थामें

बादलों के पार चलूँ

तुम्हारी बसायी

सपनों की दुनिया की।


सहेलगाह पे ना

वहाँ कदम नहीं डगमगाएँगे..!


दुनिया की रस्मों की

हिफ़ाज़त करते थक गई हूँ

ढलान खींचती है

तुम्हारे प्रति मोह की पर,


विशुद्ध चाहना तेरी मेरी

ना भाएगी ज़माने को

क्या इश्क के लिए भी

कोई उम्र की सीमा होती है ?


यूँ ना देखो पिघल जाऊँगी,

कर लेने दो कर्तव्य पूरे

इस जन्म के बंधन के सारे,


गर होता है जन्म कोई दूजा

कर दिया लो तुम्हारे नाम..!

पर वादा करो

उम्र की भोर में मिलोगे

अगले जन्म।।


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