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Sandeep Gupta

Others

5.0  

Sandeep Gupta

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रेलगाड़ी

रेलगाड़ी

2 mins
386


रेलगाड़ी के सफ़र में,

खटर-पटर बहुत है ।

पर छुक-छुक छक-छक, 

छक-छक छुक-छुक के बीच,

तमाशा भी है भरपूर,

मनोरंजन भी है भरपूर ।


साथ कुछ घंटों का,

किसी को लगता लम्बा,

किसी को लगता छोटा ।

साथ कुछ घंटों का,

किसी को ख़ूब भाता,

किसी को बहुत खटकता ।


अधसोए, अधजगे,

कुछ बैठे, कुछ पसरे,

कुछ पैर फैलाए मस्त,

कुम्भकरण से लेटे।

कुछ सिकुड़े-सिमटे कोने में,

राज पाट छोड़, बैठे हों जैसे ।


कोई मितभाषी,

तो कोई बड़बोला,

मौन धरे है बैठा कोई ।

कोई मस्त मिज़ाजी,

कोई नकचड सनकी पाजी ।

सीट को समझ राजगद्दी,

जमा है बैठा कोई,

पुट्ठे भर जगह पाने की,

फ़िराक़ में है खड़ा कोई ।


कोई पास आ रहा किसी के,

कोई दूर जा रहा किसी से,

मिलने की आतुरता,

बिछड़ने का ग़म,

कोई अनमना-गुमसुम बैठा,

ज़बरन बिठा दिया हो जैसे ।


चलती, रूकती, रेलगाड़ी,

कोई चड़ता, कोई उतरता,

कुछ शहर पहचाने से,

कुछ अनजाने से आते,

कुछ याद दिलाते वो दिन,

कुछ आजा-आजा पास बुलाते ।


बच्चों के तो भाग खुले हैं,

खिड़कियों पर क़ब्ज़ा जमाते,

रेलगाड़ी को खेल गाड़ी बनाते,

धमा-चौकड़ी मचा मचा,

किसी को लुभाते,

किसी को खीजाते ।


चना, मूँगफली

मठरी, भुजिया, 

सब बँट जाता,

सब खप जाता ।

पानी, कोल्ड ड्रिंक, ठंडा-ठंडा,

चाई-चाई कोई कहता जाता ।

खुलता जब डिब्बा खाने का,

सबका मन ललचा जाता,

आचार, मुरब्बा, चटनी, भाजी,

पूरी-पराँठा, इडली-सांभर, 

सारा डिब्बा महक जाता ।

 

इतना कुछ घटित हो जाता,

चंद घंटों के सफ़र में,

रिश्तों और ज़िंदगी को,

मिलती एक नयी चमक है,

कुछ जुड़ जाता, कुछ छूटा जाता,

रेलगाड़ी के सफ़र में ।


छुक-छुक छक-छक

चलती गाड़ी,

छुक-छुक छक-छक

रेलगाड़ी ।

रेलगाड़ी के सफ़र में,

खटर-पटर ज़रूर है,

पर तमाशा और,

मनोरंजन भी भरपूर है ।


चलते में ना उतरें, 

चलते में ना चढ़ें,

सजग रहें,

सुरक्षित सफ़र करें।

महिलाओं, बच्चों,

वृद्धजन,दिव्यांगजन को,

सीट दें, सम्मान दें ।

मुफ़्त का ये मनोरंजन,

और जीवन के अनोखे

अनुभव के लिए,

साल में एक बार रेलगाड़ी में

सफ़र अवश्य करें !


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