चूहे - 1
चूहे - 1
चूहे
अपनी पाण्डुलिपियों और छपी हुई कविताओं, कहानियों
और लेखों की कतरनों की आलमारी को
बड़े दिनों बाद खोला
तो पाया कि उन्हें
जगह-जगह से कुतर गऐ हैं चूहे
कपूर की गोलियाँ तो सुरक्षा-हित उसमें डाली ही थीं
लगा जैसे कि सुरक्षित आत्मा को
जगह-जगह कुतर गई
कोई दुष्टात्मा
चूहे अकसर
घर में दिखाई तो पड़ते ही थे
मगर बन्द आलमारी के भीतर
वे अपनी किस अलौकिक शक्ति से पहुँच गऐ
कि उन्होंने घाव कर दिऐ
मेरे भीतर
और हो गऐ गायब
तब सोचा कि
गोलियाँ ले आऊँ
चूहे मारनेवाली
या ज़हरीला पाउडर
जिसे आटे में मिलाकर
गोलियाँ बनाकर
चूहों के सम्भावित स्थानों पर
डाल दूँ
मर जाएँगे चूहे
और मिलेगी मुक्ति मुझे
उनके आतंक, उत्पात से
मगर इस तरह उन्हें मारकर
क्या मैं चूहों के लिऐ
आतंकवादी और हत्यारा
नहीं बन जाऊँगा?
क्या चूहे
मुझसे अपने साथी की हत्या का
लेंगे नहीं बदला
और करेंगे नहीं
संगठित होकर
आक्रमण मुझ पर
या काग़ज़ पर उतर चुके
मेरे रचनाकर्म पर?
क्या चूहों में भी
होती है संगठन की क्षमता
और बदले की भावना?
उन्हें पता होता है
कि वे जिस काग़ज़ को कुतर रहे हैं
उस पर सरस्वती के साधक ने
उकेरी है अपनी साधना?
और सरस्वती तो
होंगी ही क्षुब्ध इससे,
ज्ञान के महान देवता गणेश
भी होंगे क्रुद्ध-
जिनके वाहन होने का
सौभाग्य उन्हें मिला है?
कहीं मुझको ही तो नहीं
कोई ग़लतफहमी?
मैं ही तो नहीं
इन चूहों में से एक हूँ
कुतर रहा है जो
समय के विराट भोजपत्र पर
लिखे हुऐ
जीवन के शब्द
बिना जाने-बूझे?
और महाकाल
मेरी इस असभ्य हरकत पर
क्षुब्ध हो रहा है
और अपने संयम की सीमा को
करते ही पार वह
चूहे मारनेवाली गोलियाँ,
दवा और पाउडर का करेगा प्रयोग?
बिना इसकी
किये परवाह रंचमात्र भी
कि उसे कहा जाऐगा
हत्यारा चूहे का!