"कलम और हम"
"कलम और हम"
हम मौलिकता ढूँढ रहे हैं, मंचों के गलियारों में
जर्जर लज्जापटल देख लो, कवियों के श्रृंगारों में
महाकुशापद के हम रजकण, वीणास्वर के नाद हमीं
हम ही तुलसी की चौपाई, गीता के संवाद हमीं
हममें सुमनों की कोमलता, दावानल सी ज्वाला भी
हममें मस्ज़िद, गुरुद्वारा भी, गिरिजा और शिवाला भी
हम हैं शब्दों के आराधक, कलमकलश कर में धारे
निजतन में अपने आरक्षित, जय-जय हिंदी के नारे
बेशक़ मैं जुगनू हूँ लेकिन, रवि से नयन मिलाता हूँ
तमसकाल का अपना जीवन, उसकी हार दिखाता हूँ
आडंबर को त्यागो प्यारे, चिरतम को दिनमान करो
अपनी गरिमा से पहले तुम, हिंदी का सम्मान करो