मधुचन्द्रिका
मधुचन्द्रिका
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तेरे यौवन की
मादकता
और मेरी एकल
मधुचन्द्रिका यह!
रात भर ओस में
भीगती मेरी उतप्त देह
तेरे आने की प्रतीक्षा में
बाहर ही खड़ी
सुबह किसी डाली पर
खिली होंगी
मेरे सपनों की कलियाँ
उन्हें अपने होंठों से
चूम लेना
कहना उन्हें-
आऊँगी मैं इसी बसंत
ओ मेरे प्रियतम!