तीसरा वनवास
तीसरा वनवास
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छोर हो तुम
छोर हूँ मैं
बीच में है बह रहा संघर्ष
फिर भी हर्ष
कि स्थिर हो तुम
मैं तो अडिग हूँ राह में
कबसे मिलन की चाह में
पर बन्द ही होता नही
संघर्ष का बहना
कि सूखता ही है नही
जीवन का यह गहना
फिर भी बनी रहती है
मुझमें प्यास
है यह आस..
कितने कभी हो दूर
तो कितने कभी हो पास
कि ख़त्म ही होता नही
यह तीसरा वनवास।