अमन की आस
अमन की आस
दहशतगर्दी, विवाद, हमले, आरोप, मोबाइल मीडिया, लाशें, खून, चीखें
थक नहीं गये सब ?
अशांत मन को शोर की इस दुनिया से निज़ात दे थोड़ा, तो सुकून की साँस लें सकें..!
इन सबसे परे कोई बात करें
तीज त्यौहार, मेला सजे या चाँद रात में मेहमानों की महफ़िल सजे..!
हर तरफ़ बेरंग नज़ारा,
तलाश करती है निगाहें वो गीला मौसम,
रंगीन शाम ओर सिसकती धड़कनें
जूही के मंडवे
हरियाली के वक्ष पर बैठे दो जवाँ दिल ,
बस तकते आँखों ही आँखों में शाम बीता दे
हाँ तरीके पुराने सही,
प्यार की बात कही ना की हवस की..!
मुंडेर पे पंछी का चहकना, समुन्दर किनारे गीली रेत से घर बनाए,
गलियों में गीलीडंडा
गुल ही हो गया यार...!
सर झुकाए सुबह से रात तक दौड़ते इंसानों का मजमा सरदर्द लगता है..!
ढूँढ कर लाए चलो कहीं से जो खो गये है या यूँ कहो डिजिटल हो गये है
कहाँ गई वो पाकिज़गी, एकता की मिशालें
ऐसे में प्रेम को याद करें चलो, हाँ है ना मुनासिब दिल तो वही है..!
बस खो गये है कुछ लम्हे बिछड़ गये है
यूँ भी कह सकते है मरने की कगार पर
परिवतर्न के हाथों मात खाते धीरे धीरे मर रहे है,
कोई तो बचा लो इस मीडिया मोबाइल से
नज़रे हटाकर देखो ना आस-पास ही पड़े है ..!
फिर से महक उठेंगे हर बीते लम्हे दौड़ते हुए लौट आएंगे,
चलो ना पुचकारते है सब साथ मिलकर प्यार से..!
जी उठेंगे बस छूने भर की देर है ज़रा हाथ बढ़ाओ॥