गणतंत्र दिवस-2013 अमर जवान ज्योति पर
गणतंत्र दिवस-2013 अमर जवान ज्योति पर
यह दो हज़ार तेरह की छब्बीस जनवरी है
सुबह का रंग सर्द है
और धूप का गुनगुना
अमर जवान ज्योति पर
तीनों सेनाओं के प्रमुख
और गार्डों से घिरे प्रधानमंत्री हैं
सन्नाटे सी ख़ामोशी है
या ख़ामोशी सा सन्नाटा
तय नहीं कर पा रहा मैं।
तय नहीं कर पा रहा
जानता हूँ कि इंडिया गेट
कई-कई राजसत्ताओं से घिरा हुआ है
अशोक रोड
पुराना किला रोड
हुमायूँ रोड
शाहजहाँ रोड
राजपथ
सत्ता के इतने बड़े प्रभामंडल में
जनपथ एकदम सीधा चला जा रहा है
बंदूकें ख़ामोश हैं
शहीदों की स्मृति में
ख़ामोश हैं बंदूकें
प्रज्ज्वलित है ज्योति
उस खामोश सन्नाटे में भी प्रज्ज्वलित है ज्योति
ज्योति के उस आलोक की चादर में
मूल्य कहीं दुबके सो रहे हैं आसपास।
बिगुल-ध्वनि हुई
नहीं जगे मूल्य
फ़िर सन्नाटा।
यह ख़ामोशी है या सन्नाटा
फ़र्क करना मुश्क़िल है।
सन्नाटे भरी ख़ामोशी के उस माहौल में भी
हथियारों से लैस हैं कुछ वर्दियाँ
प्रधानमंत्री के आसपास
सन्नाटा गहराता चला जाता है
कुछ अक्स उभरने लगते हैं वहीं
कुछ ताज़ा दम पंछी
कुछ ख़ाकी वर्दियाँ, कुछ हथियार
आँसू के गोले और पानी की बौछार
इस सबके बीच नौजवानों के तीखे तेवर
और सब बदल डालने का स्वप्न।
अब वहाँ सिर्फ़ खामोश सन्नाटा है
कौन तोड़ सकता है उस सन्नाटे को
उस सन्नाटे की नींव में
सत्ता की मजबूत ईंटें हैं
कि अचानक
कुछ चिड़ियों की चहचहाट से
ख़ामोश सन्नाटे में हरक़त होती है।
कोई बंदूक
कोई सत्ता
कोई सन्नाटा
नहीं रोक सका
चिड़ियाओं की यह हरक़त
इस बार के गणतंत्र पर
एक यही शुभ संकेत है।