ग़ज़ल
ग़ज़ल
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कोई मंज़िल तो रास्ता ही नहीं।
उनसे अब कोई सिलसिला ही नहीं।
मुद्दतों से गुज़र है खुद से ही।
तेरे जैसा कोई मिला ही नहीं।
ख़्वाब रंगी हैं उनकी आँखों में।
मेरे ग़म से वो आशना ही नहीं।
मुझको मंज़ूर है ये दरबदरी।
तू मेरे साथ जब चला ही नहीं।
तेरे जाने के बाद से मैंने।
नाम अपना कभी सुना ही नहीं।