पेच-ओ-ख़म
पेच-ओ-ख़म
इस पार मैं था
उस पार नदी थी
दोनों एक-दूसरे से
मिलने को विह्वल
....................
बीच में सड़क थी
कोलतार से
ढकी-पुती, खूब चिकनी
भागते जीवन का
तेज, हिंसक और
बदहवास ट्रैफिक
जारी था जिसपर
अनवरत, अनिमिष
दोनों के नियंत्रण से बाहर
कहने को
सड़क की चौड़ाई भर
रास्ता तय करना था
मगर वह फ़ासला
सड़क की तरह लंबा
और पेच-ओ-ख़म से
भरा था...