टीस
टीस
क़िस्से, कहानियों, पुरानी बातों जैसी तुम,
खँडहर होते किलों पर बची निशानियों जैसा मैं,
रोते, लड़ते, उछलते बच्चों जैसी तुम,
महकते गुलाब में निकले कांटों जैसा मैं,
उगते सूरज की धूप जैसी तुम,
सुबह की उबासी में टूटती नींद जैसा मैं,
पिघलते चाँद की रात जैसी तुम,
बची हुई दोपहर में आती शाम जैसा मैं,
सुखे, खुदरे होंठो पर खिली हँसी जैसी तुम,
लिखते, मिटाते सफों पर बिखरे हर्फ़ जैसा मैं,
तपे माथे पर गिली पट्टी जैसी तुम,
क़िस्मत की लकीरों पर परिश्रम के छालों जैसा मैं,
न तेरे जैसा मैं, न मेरे जैसी तुम !
फिर क्यों रोती आँखों जैसा मैं, फिर क्यों झुकी पलकों जैसी तुम !