अब उस पार मिलूँगा मैं
अब उस पार मिलूँगा मैं
क्यों सलवट माथे पर तेरे,
ये लब क्यों थर्राते हैं,
क्यों चेहरे पर चिंता बिखरी,
नैना क्यों भर जाते हैं।
छोड़ जगत के तानों को तू,
अपनों का डर रहने दे,
इनकी उनकी कसमें बिसरा,
लाज का घूँघट रहने दे।
गर एक क्षण भी मिला नहीं हूँ,
फिर सौ बार मिलूँगा मैं,
अब उस पार मिलूँगा मैं,
अब उस पार मिलूँगा मैं।
जिस जग ना हो कोई बंधन,
जिस पथ ना हो बाधाएँ,
जिस मेले में रीत के तन पर,
लिपटी ना हो आशाएँ।
जिस सागर में प्रीत बहे,
और जिन गलियों में नेह रहे,
उस संसार मिलूँगा मैं,
अब उस पार मिलूँगा मैं।
गर एक क्षण भी मिला नहीं हूँ,
फिर सौ बार मिलूँगा मैं,
अब उस पार मिलूँगा मैं,
अब उस पार मिलूँगा मैं।
चाँद का तकिया, रात की चादर,
बादल का बिस्तर कर लेंगे,
मैं तुममें, तुम मुझमें,
घुलकर मिल जाये तो घर कर लेेंगे।
मंदिर-सा ये तन महकेगा,
मन चहकेगा बागों-सा,
गा मल्हार मिलूँगा मैं,
अब उस पार मिलूँगा मैं।
गर एक क्षण भी मिला नहीं हूँ,
फिर सौ बार मिलूँगा मैं,
अब उस पार मिलूँगा मैं,
अब उस पार मिलूँगा मैं।
तुम वो हो जिसको छूकर भी,
टूटा ना वैराग मेरा,
चूमा तो चिन्मय कहलाया,
छूट गया हर दाग मेरा।
तुम वेदों की अमर ऋचा-सी,
मैं योगी मैं संन्यासी,
जीवन हार मिलूँगा मैं,
शिव के द्वार मिलूँगा मैं।
गर एक क्षण भी मिला नहीं हूँ,
फिर सौ बार मिलूँगा मैं,
अब उस पार मिलूँगा मैं,
अब उस पार मिलूँगा मैं।