कोई गीत लिखूँ सावन का
कोई गीत लिखूँ सावन का
धरा के सम्पूर्ण समर्पण का,
या अम्बर के आलिंगन का,
सृष्टि के नूतन नर्तन का,
बीजों के प्रस्फुटन का,
कोई गीत लिखूँ सावन का !
किसी विरहिणी की विरहन का,
या चातक के सम्मोहन का,
जीवन के नित आवर्तन का,
कल कल के संकीर्तन का,
कोई गीत लिखूँ सावन का !
मन की एक भीगी उलझन का,
मृदु भावों के सम्प्रेषण का,
या करुणा के आलोड़न का,
जड़ में चेतन के कम्पन का,
कोई गीत लिखूँ सावन का !
क्या कुछ लिख जाना चाहूँ मैं,
लेकिन कब क्या लिख पाऊँ मैं,
मनोभावों के विश्लेषण का,
खुद के समग्र अन्वेषण का,
कोई गीत लिखूँ सावन का !