"गहराई जिदंगी की"
"गहराई जिदंगी की"
जिंदगी खेल नहीं है,
जितना सरल दिखती है,
उतनी ही कठिन,
प्रतीत होती है।
हर वक़्त दिखता
जो गहरा समंदर है
कभी उलझो तो
कहानी का फेर है ये।
भीड़ में खुद को
तलाशती आवाज है ये
सुकून के पल को खोजती
नीरव वृतांत है ये।
ये शमां कभी साहिल का
परवाना बन जाता है
कभी ओझल स्वरूप
का अफसाना बन जाता है।
कोई दूर होकर भी
अपना बनता है।
कोई नजदीकियों से
किनारा करता है।
कोई पारिवारिक संबंधों
के स्वर मे एकजुट बनता है,
हर हमय अलग किरदार में
एक नए किरदार का ।
दिलचस्प हिस्सा क्यों
बनती है ये जिंदगी।
सच है ये जिंदगी खेल नहीं
जिसका किसी से
कोई मेल नहीं।