मरने की पीड़ा
मरने की पीड़ा
कब तक रहना इस क़ब्रिस्तान में
ये है क्या ज़िंदगी
दुनिया में लोग मरते हैं
जीने का शौक, है ये सोचने की बात।
इस दुनिया में लोग कमी नहीं
लोग पीने के लिये और खाने के लिए तड़पते बहुत
है ये ज़िंदगी, दुश्मन की ज़िंदगी
हम क्या करें, लोगों की तकलीफ से।
बहुत से लोग मरते हैं जीने के लिये
ऊपर वाले देखेंगे पैसे वालों का नाटक
कौन क्या करें, ये दुनिया लोगों की
हर-एक-वक़्त पैर बढ़ता है मतलब की तरफ।
वक़्त आता है मगर छूट जाता है
लोग बर्बाद होते हैं वक़्त के सामने
है क्या लेना, इस दुनिया में
देने का , लोगों के आस-पास नहीं है।
मर जायेंगे लोग बेकार बीमारी से
क्या तकलीफ है दुनिया में, बदलना मुश्किल है
हिम्मत की लोगों में है बहुत कमी
ये है पागल दुनिया में कहीं।