बन्द कलम की स्याही
बन्द कलम की स्याही
कुछ निःशब्द नज़रों की छाप है,
कुछ फटे पन्नों का हिसाब है,
कुछ बदल रहा,
कुछ बदलेगा,
कुछ बदलने की चाह है।
एक नया जहान, एक अपना - सा,
कुछ कच्चा - सा, पर सच्चा - सा,
कुछ मीठा - सा, कुछ खट्टा- सा,
न मेरा - सा, न तेरा - सा,
एक जहान हमारा सजेगा फिर,
हर पन्ना जुड़ता जाएगा,
एक पन्ना मैं, एक पन्ना तुम,
एक किस्सा सब बतलाएगा !
बस एक कदम तुम और बढ़ो,
मैं भी हूँ संग, धीरज रखो,
फिर होंगे सारे सपने सच,
कुछ बच्चों की मुस्कान से,
कुछ उनकी रची किताब से,
ये मौका है तुम गवाना मत,
देकर उम्मीद फिर झुठलाना मत !
चलो चलें फिर बच्चों संग,
उनकी सपनों की ख्वाहिश में,
एक तुम देखो, एक मैं देखूँ,
उस बन्द कलम की स्याही में !