वृक्ष हमारी अनमोल धरोहर
वृक्ष हमारी अनमोल धरोहर
बचपन में जब नानी के यहाँ जाते थे,
तो आम तोड़ तोड़ कर खाते थे।
साइकिल पे कभी जाते थे,
वृक्षों की छाया पाते थे।
वृक्षों पे चढ़ना तो रोज का काम था,
टहनियों में लुका छिप्पी खेलना आम था।
रोज सुबह चिड़िया हमें जगाती थी,
घर के पेड़ पे ही अपना आलना बनाती थी।
आज कल वो चिड़िया शायद गायब हो गयी है,
घर नहीं है इसलिए शायद कहीं खो गयी है।
आम अब सिर्फ बाजार से आते हैं,
दवाई से पकते हैं, पता नहीं हम क्या खाते हैं।
साइकिल की जगह एक्सप्रेसवे पे कार दौड़ती है,
ठंडी हवा एसी की मशीन छोड़ती है।
विकास के लिए कुछ हद तक शायद ये मज़बूरी है,
पर पेड़ धरती की सेहत के लिए बहुत जरुरी है।
कहीं पर बाढ़ तो कहीं पे सूखे का कहर,
इनसे बचने के लिए पेड़ लगाओ गांव गांव शहर शहर।