जिंदगी
जिंदगी
है जिंदगी एक धूप दोपहरी ।
तो प्रिय साथ तुम्हारा छाँव सुनहरी।।
जिसकी शीतलता में खिलती ।
बगिया जीवन की है मिलती ।।
सुख-दुख दिन-रात से ढलते ।
हम मिलकर साथ जो चलते ।।
रंगत बहारों की है निखरती ।
अंतर्मन की कलियां जब खिलती।।
सौंदर्य संवरता और पुष्प का ।
करता स्पर्श पवन कुसुमरज का।।
प्रस्फुटित पराग राग उपवन में।
करता नृत्य नवल मयूर कानन में।।
संवेदनाओं के कोमल धागों से ।
पिरोए रिश्तों को कुसुमित भावों से।।
नित स्निग्ध स्नेह सौरभ बरसाते ।
ज्यों गुलाब मध्य कांटों के मुस्काते।।
आदर्शों के श्वेत पोषक बनकर ।
कृत संकल्पों की लाज बचा कर।।
चलते रहे सत्यदीप के उजाले में ।
घिरे क्यों मिथ्या आरोपों के जाले में।।
सीख गए अब कांटों के संग जीना ।
जहर जिंदगी का भी नित पीना ।।
मिल रहा जो हाला आज जमाने से।
पी रहे उसे हम अमृत के पैमाने से।।
काश! होती कुछ नीलकंठ सी शक्ति।
नासूर बने प्रतिभावों से पाते मुक्ति।।
समझाएं क्या? ही किसी को ।
मिलता कर्मफल यहां सभी को ।।
एक समान सरोवर में हैं पाते ।
बगुला झख, और हंस मोती चुगते।।
है जग में बंधे सभी कर्म विधान से
फल से बचते क्यों फिर अनजान से।।