गलती
गलती
हम न रोए कभी शायद ये हमारी गलती थी
वैसे तो रोने के लिए रोज ही तबियत मचलती थी
किसे सुनाये हाल-ए-दिल, यहाँ तो सबकी आँखे नम हैं
इसी खयाल से आँखे हरदम आंसुओं को निगलती थी
अपने गम को घूंट- घूंट पीकर,मुस्कुराते रहे हम हरदम
वैसे तो रोज़ ही हमारे अरमानों की अर्थी निकलती थ
गर्मियों की रातों में जब भी पुरवाइयाँ चलती थी
करवटें लेते थे, तड़पते थे फिर भी रातें न ढलती थी
किसी की याद को सीने से लिपटाए जीना भी अजीब हैं
धड़कने तेज़ हो जाती थी जब यादों की शमा जलती थी
समझौता कर लिया जिंदगी से चुपचाप सहेंगे सबकुछ
इसीलिए हमारे दिल से न कभी भी आह निकलती थी...।