ग़ज़ल
ग़ज़ल
1 min
14.2K
बादे सबा का रुख जो सु ए मयकदा भी हो।
खुश्बू से तेरी ज़ुल्फ़ की थोड़ा नशा भी हो।
देखे हैं इस जहान के गुलशन में गुल हज़ार।
गुल कोई मेरे यार के रुख़सार सा भी हो।
यूँ बेसबब भी रूठना अच्छा लगा मुझे।
गर इश्क़ है तो इश्क़ में शिकवा गिला भी हो।
आया ख्याल दिल में ये रंगों को देखकर।
रंगों में एक रंग तेरे इश्क़ का भी हो
सुनता है मेरा दिल भी बड़े ग़ौर से इन्हें।
शब् की खमोशियों में तुम्हारी सदा भी हो।
कितनी अजीब हैं मेरे दिल की ज़रूरतें।
इन धड़कनों के पास तेरी ही सदा भी हो।
पहुँचा दे मुझको मेरी जो मंज़िल के आस पास।
वो हमसफ़र हो साथ मेरी दिलरुबा भी हो।
ऐसा नहीं कि सिर्फ ये नज़रों का है गुनाह।
लगता है जैसे साथ में दिल की खता भी हो।
कानों में आके हौले से किसने ये कह दिया।
केतन कमाल हमसे कभी आशना भी हो।