मेरा साया है साथ मेरे
मेरा साया है साथ मेरे
मैं हूँ और मेरा,
साया है साथ मेरे,
नसीब दूर तक,
चला आया है साथ मेरे।
ख़ून-ए-वफ़ा नज़र,
आता है शायद उसे,
नाक़िद मेरा देखता है,
जो ये हाथ मेरे।
बात जा चुकी है,
तक़दीर की रसाई से दूर,
बड़ी तेज़ी से,
पलटे हैं ये हालात मेरे।
मेरी बातों का न,
कोई जवाब देते बने,
तल्खी लिए हैं कोई शायद,
फिर सवालात मेरे।
तेरी शोख़ी, तेरी हया,
तेरा चेहरा, तेरी यादें,
फिर उसी मोड़ पे,
जा पहुँचे है ख़यालात मेरे।
मेरा बयान फिर उसे,
रुसवां कर गया होगा,
क्या करूँ कि क़ाबू में,
नहीं हैं ये जज़्बात मेरे।
सबब ढूँढे फिरती है,
क़यामत का चारसू,
अश्क़ नहीं देखती,
तेरी क़ायनात ये मेरे।