मैं आँसू बटोर लाता हूं
मैं आँसू बटोर लाता हूं
सैकड़ों आँसू यूं ही नहीं खज़ाने में मेरे,
जब भी कोई रोता है,
उसके आंसू बटोर लाता हूँ.
किसके हैं, कब गिरे थे, वज़ह बता सकता हूँ.
उंगलियों के पोरों पर रख
गिरने का वक़्त बता सकता हूँ.
सफ़र अनज़ान ही सही...
पर खत्म किस जगह...
वो मंज़िल बता सकता हूँ
आँसूओं से आँसूओं का मिलान कर...
फ़र्क़ बता सकता हूँ
आँखों के मज़हब से नहीं वास्ता इनका,
नमक क्यूं घुला आँखों से निकलकर
वो दर्द बता सकता हूँ.
झूठी शान का है या भूखे पेट से टपका
चख के खारापन
इनका फर्क़ बता सकता हूँ
मैं हर आँसू की कीमत बता सकता हूँ.
कुछ खास आँसू भी रखें हैं, मेरे खज़ाने में,
ज़िंदगी के दौड़ में नाक़ाम.
और “हासिल” से नाखुश
कई दुख के आँसू
बिकते ज़िस्म के भीतर मौजूद
पाकीज़ा रूह के आँसू
फिर भी समेट नहीं पाता हूँ
एक़्वेरियम सी कैद में
शीशे से झांकती
मायूस आँखों के आँसू
जो निकलते ही घुल जाते हैं,
संस्कारों के पानी में.
आसान नहीं है, हर आंख को इंसाफ़ दिला पाना
थक कर सोचता हूँ, छोड़ दूं ये काम अपना
पर क्या करुं...
काम मन का हो तो, छोड़ा नहीं जाता
लाख चाह के भी मुंह मोड़ा नहीं जाता
अरे सुनी ये सिसकी अभी तुमने
जाना होगा मुझे इसी वक़्त
गिरने से पहले जमीं पर थामना होगा उन्हें
क्या करूं, मैं हूँ ही ऐसा
शामिल उन चंद लोगों में...
जो बेज़ुबानों के बोल जानते हैं,
जो उनके आँसूओं का मोल जानते हैं.