मेरा वो ख्वाब
मेरा वो ख्वाब
रात्रि को एक ख़्वाब सा वो जीवन में आता है
क्षणिक प्रसन्नता देकर फिर ओझल हो जाता है
रुलाता है पर हँसाता भी है
फिर कुछ बातें कहकर वह सामने न आता है
प्यार करता है, करना सीखाता है
आलिंगन में आते आते फिर गायब हो जाता है
रूठता है तो मान भी जाता है
पर मेरी सुने बिना, फिर कही चले जाता है
ढूंढती हूँ उसको पूरे शहर
पर वो बेखबर कहीं न आता नज़र
प्रातः हर रोज़ की तरह
वो ख्वाब फिर टूट जाता है।