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Ashutosh Kumar

Others

4  

Ashutosh Kumar

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समय सारथी

समय सारथी

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उस धैर्यवान राही को क्या, 

कोई बाधा अब रोक सके

जो स्वयं समय रथ हाँक रहा, 

क्या समय उसे अब रोक सके

जीवन को जिसने जाना है, 

जिसने इसको पहचाना है

मिट्टी की खुशबू को जिसने, 

अपने दिल से पहचाना है

लड़ कर गिरता लहु में सनता, 

पर फिर उठकर जो ललकारे

वो शूरवीर कहलाता है, 

जो कभी नहीं हिम्मत हारे

नदियों को जिसने मोड़ा है, 

हिमतुंग शिखर को तोड़ा है

हीरे में जिसने चमक भरी, 

लोहा भी जिसने मोड़ा है

 

उस धैर्यवान राही को क्या, 

कोई बाधा अब रोक सके

जो स्वयं समय रथ हाँक रहा, 

क्या समय उसे अब रोक सके

जो ज्वालामुखी के अंदर से, 

ज्योति पाने की आशा रख

सप्त सिंधु को मथ कर जो, 

लेता है उसका अमृत चख

जो बढ़ जाता है रवि पथ पर, 

पाने को उसका तेज प्रखर

जो जा पहुचे मयंक तल पर, 

अपने मन की जिज्ञासा पर

सृष्टि छोर की दिशा का जो, 

उज्जवल पथ कब से खोज रहा

अब भी कुछ पाना बाकी है, 

जिसके मन पर यह बोझ रहा

उस धैर्यवान राही को क्या, 

कोई बाधा अब रोक सके

जो स्वयं समय रथ हाँक रहा, 

क्या समय उसे अब रोक सके

नीले अम्बर को चीर सके, 

ऐसी जिसकी अभिलाषा है

तारा मंडल को पार करे, 

ऐसी जिसकी इक आशा है

हर धूमकेतु के संग जिसने, 

ब्रह्माण्ड भ्रमण कर डाला है

हर ग्रहण में जिसने रवि-रथ को, 

उस अन्धकार से निकाला है

धातू को पिघला कर जिसने, 

प्रेयसी का हार बनाया है

सिंघासन की खातिर जिसने, 

एक लोक नवीन बनाया है

उस धैर्यवान राही को क्या, 

अब कोई बाधा रोक सके

जो स्वयं समय रथ हाँक रहा, 

क्या समय उसे अब रोक सके

 

 


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