खुश हूँ
खुश हूँ
रास्ते बहुत थे..पथरीले भी..मखमल भी..
तेरे रास्ते पे बढ़ के..अभिभूत हूँ मैं..खुश हूँ..
देखे हैं रंग तेरे..प्यारे भी.. क्रोध के भी..
सब रंग खुद को रंग के..अभिभूत हूँ मैं..खुश हूँ..
उज्जवल तुम्हीं से तो है संसार मेरा सारा
तुम भोर के सूरज से और रात में सितारा
तुम हो, सशक्त हूँ मैं, तुम दूर, सब कुछ हारा
छू जाऊँगी गगन को जब साथ है तुम्हारा
जानी हैं भावनाएँ ..स्वार्थ भी..अहम् भी..
विश्वास को समझ के..बलिहारी हूँ मैं..खुश हूँ..
तुम प्रेम के बिछौने, तुम नेह की हो चादर
तुम छड़ी समीक्षा की, अनुशासन का हो दफ्तर
तुम नई सीख प्रतिदिन, तुम मोह का हो जंतर
तुम मुस्कान हो बालक की, आलिंगन से सुन्दर
सीखा है संग तेरे..गिरना भी..और उड़ना भी..
पर संग तेरे बह के..अभिभूत हूँ मैं..खुश हूँ ..!!