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Anshu Shri Saxena

Tragedy

3  

Anshu Shri Saxena

Tragedy

कालिख भरे हाथ

कालिख भरे हाथ

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314


रेल की पटरियों पर 

कोयले से लदी मालगाड़ियों 

के गुज़रते समय....


छोटे बच्चों के झुंड, 

बोलते है धावा लम्बे लम्बे

बाँस के डंडों के साथ...


गिराते हैं सरकारी कोयला 

मचाते हैं जी भर उत्पात

फिर आसपास छिटके 

काले हीरे या कोयले

के टुकड़े बीनते वो नन्हें हाथ


जब कोयले से भरे थैले ले

पहुँचते हैं अपनी झोपड़ी में

तब चूल्हा जलता है घर में

रोटियाँ पकती हैं और

भरती हैं परिवार का पेट


नन्हें हाथों की कालिमा तो

मिट जाती है चंद पानी

की बूँदों से....पर क्या

वो कालिख धुल पायेगी ?


जो इन बच्चों की माँएं 

इन्हें स्वयं सिखाती हैं ?

चोरी करना....

या सरकारी कोयले पर

डाका डालना...


और इन नन्हें कोमल हृदयों

को चोरी की अमिट

कालिख से रंगना...



काश...इस कालिख से

बच पाते देश के ये

भविष्य, ये नन्हे नौनिहाल.....


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