मेरी आँखों में मुहब्बत के मंज़र है (शायरी)
मेरी आँखों में मुहब्बत के मंज़र है (शायरी)
खोल दे पंख मेरे कहता है परिंदा, अभी और उड़ान बाकी है
ज़मीं नहीं है मंजिल मेरी, अभी पूरा आसमान बाकी है
लहरों की ख़ामोशी को समंदर की बेबसी मत समझ ऐ नादाँ
जितनी गहराई अन्दर है, बाहर उतना तूफान बाकी है....
जो मिल जाये मुहब्बत तो हर रंग सुनहरा है
जो ना मिल पाए तो ग़मों का सागर ये गहरा है
आँखों में मेरी है जिसका अक्स, दिल से कितना दूर वो शख्स
रौशनी कैसे आये हमारे घर तो अँधेरों का पहरा है....
मन तेरा मंदिर है, तन तेरा मधुशाला
आँखें तेरी मदिरालय, होंठ भरे रस का प्याला
लबों पर ख़ामोशी, यौवन में मदहोशी
कैसे सुध में रहे फिर बेसुध होकर पीने वाला
किसी की ख़ूबसूरत आँखों में नमीं छोड़ आया हूँ
ख़्वाबों के आसमाँ में हकीकत की ज़मीं छोड़ आया हूँ
मुहब्बत नहीं है कम हाथों में अंगारे रखने से
लगता है इश्क में फिर कुछ कमी छोड़ आया हूँ
तेरे होंठो की मुस्कुराहट खिलती कलियों सी है
तेरे बदन की लिखावट सँकरी गलियों सी है
चंद्रमा है रूप तेरा, मन तेरा दर्पण है
तेरी हर एक अदा पर क्षण-क्षण, कण-कण जीवन समर्पण है....
बिखरे हुए सुरों को समेटकर एक नया साज लिख जाऊँगा
गूँजती रहेगी सदियों तक फिज़ाओं में, एक रोज़ वो आवाज़ लिख जाऊँगा
लिखता हूँ गीत मुहब्बत के मगर करता हूँ ये वादा
लहू की हर एक बूँद से एक दिन इन्कलाब लिख जाऊँगा !