आहट भी ना हुई
आहट भी ना हुई
आहट भी ना हुई..
कब नन्ही सी खिलती साँसों को,
खामोश सुला दिया,
कब मासूम पनपती बिटिया को,
कोख में ही मिटा दिया... !
आहट भी ना हुई..
कब पुत्ररत्न की अभिलाषा से,
गृहलक्ष्मी गँवा दिया,
जिस बेटी को अपने खून से सींचा,
उसका ही खून बहा दिया...!
माँ क्या सचमुच तुझे आहट भी ना हुई कि..
भ्रूण हत्या की भागी बन तूने,
बेटी को अभिशाप बना दिया !