क्या मज़ाक है
क्या मज़ाक है
मेरे दिल पर नश्तर से तराशी तस्वीर तुमने,
ज़फा की खुद ही और कहा कि हम हो गये आज़ाद,
क्या मज़ाक है !
मेरे चेहरे पर दुआ मेरी सलामती की,
पीछे मेरी बरबादी की फरियाद,
क्या मज़ाक है !
काट कर सब्ज़ दरख्तों को मुनाफे के लिये,
छाँव के वास्ते कर रहे दरख्वास्त,
क्या मज़ाक है !
मर्द होने का गुरूर तो सजा रक्खा है,
ज़ुल्म औरत पे हुआ तो कर गये बर्दाश्त,
क्या मज़ाक है !
दीन के नाम पर सियासत में खूँँ मिलाते हो,
और सियासत पर सितम ढाने का इल्ज़ाम,
क्या मज़ाक है !
मुल्क के वास्ते खूँ तो छोड़ो,
पसीना ना बहा,
पर नेमते मुल्क को लिखते हो अपने नाम,
क्या मज़ाक है !
तुम्हारे तंज़ में छुपे डर को पढ़ लिया है सिंह,
तुम्हारा आखरी तक डरने से इंकार,
क्या मज़ाक है !
हमने अपने गम को दे दी ज़रा - सी स्याही,
तुम मान बैठे कि हम हो गये फनकार,
क्या मज़ाक है !