क़यामत
क़यामत
इस बार कयामत आने वाली हैं
चलो, तुम टूटी उम्मीदों को बाँध लो
मैं अपने बिखरे सपनों को चुन लेती हूँ।
फ़िर हमें कहीं दूर जाना है
जहाँ सागर से आसमान मिलता है
ज़मीन हवा से खुलकर बात करती है
बादलों की गाँव और मखमली छाँव है।
काँच की आस को सम्भाल कर रख लो
सीने की घुटन को दबा कर जी लो
मैं चाहत की पोटली सजाती हूँ।
तुम कहते थे इस बार हम खूब रात बितायेंगें
समंदर की ठंडी रेत में
चाँद को खामोश निहारेँगे
अगर कयामत से पहले
ये उम्र दम तोड़ दे
तो किसी बहाने हम ये कसमे तोड़ देंगे।
देखो, सब अपने जगह सो रहें हैं
ये पेड़ ये किनारे ये रस्ता ये नज़ारे
तुम ना जगाओ इन्हें
कयामत इन्हें चूमने वाली है...
ये सब मदहोशी के आगोश में
सो जाने वाले हैं।
तुम सारे सौखियाँ समेट लो
हर तरफ़ कहर होगा
तुम अपने खौफ को कम कर लो
मैं जी रहीं हूँ क़तरे में
अपने जिस्म में मेरे जिस्म ओढ़ लो।
इस बार कयामत आने वाली है।