एक सैनिक का ख़त, उसके शहीद होने के बाद
एक सैनिक का ख़त, उसके शहीद होने के बाद
काश ! मैं आ पाता
माफ़ करना मेरे दोस्त, जो किया वादा न निभा सका
इस बार छुट्टियों में, तेरे संग बैठ मैं बातें न लड़ा सका
बहुत इच्छा थी तेरे संग शतरंज का वो दाँव लगाने की
अपनी भुजाओं की ताक़त तेरे संग आज़माने की
पर एक बार फिर वो मुक़ाबला पूरा कर न सका
यह दवंद्व बीच में छोड़ जाने की टीस मेरे दिल में भी है
हर लम्हा यही सोचता हूँ
काश ! मैं आ पाता
माफ़ करना माँ, जो मैं तेरा चश्मा न बनवा सका
पैसे भिजवा दिऐ हैं, पर मैं ख़ुद न बनवा सका
ज़रूरी काम से फिर छुट्टी टल गई है
अब काम की मुझे आदत सी पड़ गई है
एक बार फिर सुक़ून से तेरी गोद में ना सो सका
तुझसे न मिल पाने का अफ़सोस मुझे भी है
हर लम्हा यही सोचता हूँ
काश ! मैं आ पाता
मेरे इश्क़ यूँ नाराज़ न होना
मेरी याद में तू, इक पल भी न रोना
मैं बेवफ़ा नहीं था कसम से, पर वादे को न निभा सका
वतन की ज़िम्मेदारी ही ऐसी है
कि तुझे अपनी चाहत का नग़मा नहीं सुना सका
हो सके तो मुझे माफ़ कर देना
अल्विदा न कह सकने का अफ़सोस मुझे भी है
हर लम्हा यही सोचता हूँ
काश ! मैं आ पाता
मेरे वतन, मैं तेरी गोद में कुछ दिन और सोना चाहता था
तेरी वात्सल्य में कुछ लम्हा और खोना चाहता था
पर क्या करूँ, मौत का बुलावा वक़्त से पहले आ गया
उसके इश्क़ का इज़हार ही कुछ ऐसा था
ज़िन्दगी फिर बेवफ़ाई कर गयी,
मैं तो ज़िन्दगी के इबार में ही बैठा था
तेरी इतनी ही सेवा कर पाने का अफ़सोस मुझे भी है
हर लम्हा यही सोचता हूँ
काश ! मैं आ पाता