बारिश
बारिश
वर्षा सुन्दर मोहक प्यारी, रिमझिम से सबका मन हर्षाये
हरियाली भी पैर पसारे, बूंदों ने जब तीर चलाये।
धरती की ये तपन मिटाये, जीवों की भी प्यास बुझाये
वातावरण को शुद्ध बनाये, इसमें सारे गुण समाये।
तरंग उमंग चित में दौड़ी, बारिश का जब मौसम आया
प्रेम के काले बादल ने फिर एक दूजे पर प्रेम बरसाया।
जीवन अस्त व्यस्त हो जाता, गर वर्षा न समय पे बरसे
जीव, जंतु, जंगल प्यासे, बूँद-बूँद को नैना तरसे।
धरती में सोये शिशु बीज, किससे अपनी गुहार लगाये
माँ के दूध सा जल बरसे, स्नेह में तेरे वो पल जाये।
किसान हमारा अन्नदाता, कृपा नीर बरसाती रहना
सही ढंग से बारिश करके, आत्महत्या से उसे बचाना।
मैं हूँ वर्षा कवियत्री, विचार के बादलों की कलम बनाई
फिर देश शुष्कता पर बरसूं, लगे कि बिजली गगन में आई।
कैसी समाज में बंजरता, कहाँ से आए ये मरुस्थल
शब्दों की ऐसी बारिश कर दूं, भीग उठे अम्बर भूतल।
शुद्ध विचारों की बौछार गिराई, समाज जब भी मलिन हुआ।
गर एक दोष भी दूर कर सकूं, समझो कि जीवन सफल हुआ।
वर्षा रानी हमसे रूठी, जब से बढ़ गया प्रदूषण
पेड़, पहाड़ वर्षा के साथी, आओ करे इनका संरक्षण।