कहती बातें - रुकती बातें
कहती बातें - रुकती बातें
"आज से तुम मेरी हो...."
"पूरी तरह से मेरी...."
वह सब यही बातें करता रहता था...
और मैं?
मैं सातवें आसमाँ में उड़ा करती थी....
दिन महीने साल सब इसी तरह गुज़रते चले गये....
दिन प्यार में....
महीने मोहब्बत में ....
और साल इश्क़ में ....
मैं अपनी इस सपनीली दुनिया में खो सी गयी थी....
मैं और मेरी रंगबिरंगी दुनिया...
मेरी यह सपनीली दुनिया लिविंग टूगेदर के फैसलें से और भी हसीन हो गयी....
जिसमे बस मन मर्जी थी....
न कोई रिवायात....
न ही कोई बंधन भी....
सब तरह से एक आज़ाद जिंदगी....
जिसे कभी ख्वाबों में देखा था...
कभी उसका किस्से कहानियों में जिक्र हुआ करता था....
या कभी किताबों में ही पढ़ा था...
लेकिन क्या वह आज़ादी मुझे यूँही मिली थी?
शायद नही....
'नथिंग इज फ्री' की तर्ज़ पर मुझसे भारी क़ीमत वसूली गयी थी...
मेरा 'सेल्फ रेस्पेक्ट'....
एक दिन यूँही उसने बातों बातों में मुझसे कहा था....
"किसी आदमी के साथ बिनब्याही औरत के रहने का मतलब तुम जानती हो?"
"जी हाँ, उसे लिविंग टूगेदर कहते है..." कहते हुए मैं हँस पड़ी....
सही कहा है, "इस ज़माने में इसे लिविंग टूगेदर कहा जाता है लेकिन पुराने ज़माने में...."
वह कहता कहता रुक गया...
उस कहते कहते रुकने से उसने कितनी बड़ी बात कह दी थी....
बाकी बात उसकी निगाहों ने पूरी कर डाली.....
उन निगाहों ने जैसे मुझे छलनी कर दिया....
वह हँसकर कहने लगा,"चिल बेबी,चिल.. वी आर इन लिविंग टूगेदर..."
बात आयी गयी हो गयी....
लेकिन रात को बिस्तर के दूसरी ओर मैं खुद से सवाल करने लगी....
एक अपराध की सज़ा दोनो के लिए अलग क्यों?
बिन ब्याही औरत किसी मर्द के साथ रहे तो वह 'रखैल' हुयी...
और वह मर्द ? उसके लिए कोई नाम नही...कोई विशेषण भी नही...