चाहता है मन मेरा
चाहता है मन मेरा
चाहता है मन मेरा
अक्षरों का समूह मैं बन जाऊँ
शुरू से लेकर अंत तक मैं
मन की बात फिर कह पाऊँ
नहीं ढाल पाती ख़ुद को कभी
कुछ डरे सहमे से लहज़े में
बना के कलम को ढाल फिर
तनक तनक के लिख जाऊँ
कभी प्रियतम की चाह बनूँ
कभी मिलन की राह बनूँ
बनूँ कभी माँ की लोरी
कभी पिता का सर्वसार बनूँ
कभी नारी की पुकार बनूँ
कभी रोकने अत्याचार की ढाल बनूँ
बनूँ कभी कोई देशभक्ति गीत
कभी प्रणय का हार बनूँ
मेरे हर लफ्ज़ में हो
जयकारा अपने देश का
कभी अतंरगी भाषा बनूँ
अपने परिवेश का
है चाह यही वीर रस में
मुझे भी लिखा जाये
मातृभूमि को याद कर
हर लफ्ज़ मेरा कहा जाऐ
चाहता है मन मेरा
अक्षरों का समूह मैं बन जाऊँ
शुरु से लेकर अंत तक
मन की बात फिर कह पाऊँ