ओ मेरे सांवरे...’
ओ मेरे सांवरे...’
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उस महासमर में
जब अपने ही खड़े थे
अपनों के सामने
तुम ही तो आये थे
तब बनकर कुशल सारथी
धर्मरथ को थामने ।
विश्वरूप धरकर
धरा से आकाश तक लगे
ब्रम्हांड को नापने
टूट गये सारे भ्रम
ऐसा दिया गीता का ज्ञान
अंतर्मन में झाँकने ।
दर्शन अभिलाषी
तकते ही रह गये नयन
ऐसे हुये बावरे
होती न विजय
लहराता न धर्म का परचम
तुम बिन सांवरे ।।