माँ का अंश
माँ का अंश
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माँ का अंश दूर देश में रहता है अब,
मेरा अंश वो सुंदर-सलोना।
पास रखा है हॄदय से लगाकर,
उसका वो पहला बिछौना।
अपलक निहारूँ रोज़ मैं,
उसका वो छुक-छुक वाला खिलौना।
चलता था मेरी उँगली पकड़ जो,
डगमग-डगमग पांव से।
अब विदेश में भागता दौड़ता,
रिक्त हो गया भावों के गांव से।
निकट मेरे हैं उसके वो मासूम,
तुतलाते एहसास।
बना मशीन-सा यांत्रिक वो,
दूर ममत्व की छांव से।