क़ाबिल
क़ाबिल
कैसे दावा करें कि हमें इश्क़ हो गया है,
जब हुस्न का हर चेहरा ही हमारा कातिल हो गया है,
देखती हैं निगाहें किसी पहचानी हसीना को कुछ दूर वक़्त के,
जो वक़्त बीत के, हमें उनके काबिल कर गया है,
जो है इनायत बस हमारे तसव्वुर के, लगता है,
जिनके दीदार बिना ही उनसे इश्क़ हो गया है,
तो भला कैसे दावा करें कि हमें इश्क़ हो गया है!!