गुल्लकें
गुल्लकें
गुल्लकें कभी उदास नहीं होतीं,
रहती हैं हमेशा खुश।
ख़ाली भी, भरी भी,
टूटी भी, फूटी भी।
ख़ाली होने पर भी गुल्लकें,
रहती हैं खुश क्योंकि,
अपने दिलो-दिमाग पे,
ख़ुद को भरने की ज़िद का,
बोझ नहीं ढोती वो।
भरी होने पर भी गुल्लकें,
रहती हैं खुश क्योंकि,
भर जाने पर,
अपनी उपलब्धि के अहंकार से,
ख़ुद को परे रखती हैं वो।
टूटने पर भी गुल्लकें,
रहती हैं खुश क्योंकि,
सिक्कों की खनक सुन
दमकते, खिलखिलाते चेहरे देख,
भुला देती है फूटने का दर्द वो।
खाली में भी खुश,
भरे में भी खुश,
टूटे में भी खुश,
फूटे में भी खुश,
गुल्लकें हर हाल में रहती हैं खुश।
सिफ़र से शिखर तक के सफ़र में,
हर क़दम खुश रहतीं हैं गुल्लकें,
नोटों की गड्डियों के मोह में
बँधने के बनिस्पत,
सिक्कों की खनक में ही मगन,
छोटी ही सही,
पर ख़ालिस ख़ुशियाँ बाँटती हैं गुल्लकें।
नहीं जानती,
जोड़-तोड़, गुणा-भाग,
पर कभी किसी का
दिल नहीं तोड़ती गुल्लकें।
दिए की लौ बन,
अंधकार मिटाने का,
जज्बा रखती हैं,
ख़्वाबों को हक़ीक़त में बदलने का,
हुनर रखती हैं।
ख़ुद टूट कर भी,
दिलों को जोड़ने का,
जिगर रखती हैं गुल्लकें।
क्या तुम भी चाहोगे,
बनना एक गुल्लक,
हमेशा खुश,
हर हाल में खुश,
ख़ाली भी खुश।
भरे हुए भी खुश,
टूटे हुए भी खुश,
फूटे हुए भी खुश,
सिफ़र में भी खुश,
शिखर पे भी खुश।।