Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Shailly Shukla

Drama Tragedy

4  

Shailly Shukla

Drama Tragedy

परिवर्तन

परिवर्तन

2 mins
13.7K


मैं एक ऐसा वृक्ष था जिसको घटा से प्यार था

पर जड़ों के बिना भी जीवन मेरा दुश्वार था ..


जड़ जो मेरे जीवन का धरातल थी ..नींव थी

घटा थी सुकून मन का ..सौंदर्य था ..सजीव थी ..


घटा का आना हृदय में ऐसा कुछ कर देता था

कि मैं सब कुछ भूल कर उसे आग़ोश में भर लेता था


प्रेम की बलिहारी वो प्रेम बरसाती थी तब ..

पत्ता-पत्ता, डाली-डाली वो भिगा जाती थी सब ..


जब मैं जलता धूप में तो छाँव सी कर देती थी ..

थी घटा ऐसी कि मेरे घाव भी भर देती थी ..


एक दिन मैंने घटा से यह कहा,

कि सुन घटा

क्यों नहीं तू आसमान को छोड़ दे ..

बन के नदिया मेरी जड़ों में ही रहे ..



यह जड़ें हैं जिनके कारण मैं यहाँ जीवित खड़ा हूँ ..

जो भी मिलता है मुझे सब इनसे ही पाता रहा हूँ ..


तू भी इनमे आ समां जा ..

भूल जा तू कौन है ..

प्रेम है जो मुझसे तो फिर

अब भला क्यों मौन है ..


घटा तो पर घटा थी ..

नदिया तो कोई और थी ..

नदी बन पाना घटा के

बस में न था कभी भी ..


वृक्ष का पर मोह था ..

और मोह भी गहरा बहुत ..

उस के बिन रह पाना

घटा के बस में न था कभी भी ..


कोई भी उत्तर न था ..यह घटा के हालात थे ..

आज बादल ..हवा ..और न मैं ही उसके साथ थे ..


घटा ने खुद को ही तोड़ डाला ..नष्ट हो गयी ..

और उसके साथ मेरी सारी खुशियां खो गयी .


आज मैं सूखा पड़ा हूँ ..

जड़ों के सहारे खड़ा हूँ ..

पर कोई जीवन नहीं है ..

शाख कोई हरी नहीं है ..


घटा की तलाश में ..

आसमान को तक रहा ......




Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama