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Niteesh Joshi

Romance

3  

Niteesh Joshi

Romance

यादें

यादें

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याद हैं वो सपने जो हमने जागते सोते देखे थे, एक-दूसरे की आँखों में? 

तेरी तो खबर नहीं, पर मैं तेरी तस्वीर देख कर,

अब भी कभी कभी वक्त कि शाख से कुछ प्यार भरी पत्तियाँ तोड़ लिया करता हूँ।

याद है तुमको वो दिन जब मैं बहाना लेके काम का,

कुछ जल्दी आया करता था स्कूल और तुम भी अपना नाश्ता छोड़कर आया करती थी,

मिलने उस कोने वाले कमरे में जहाँ पंछियों के अलावा किसी का आना-जाना नहीं था।

याद नहीं होगा तुमको शायद पर मैं अब भी कभी-कभी उस कमरे में जाकर,

हर उस चीज को, जिसको तुमने छुआ था कभी,

उसे चूम कर कुछ यादें बटोर लिया करता हूँ।

हाँ इक सवाल था जो कब से दाखिल है छोटे अक्षरों में डायरी के आखिरी शफे पे,

क्या अब भी कोई तुमसे पूछता है हाल मेरा?

यहाँ तो बुरा हाल है, नजर छिपाते दुनिया से,

जहाँ देखो तुम्हारी ही शायरी है।

अगर कोई पूछ लेता है पकड़ कर शबब इस खामोशी का हमसे,

तो मैं मुस्कराकर एक नयी बात छेड़ लिया करता हूँ।

मुझे याद हैं वो सारी नज्में, वो सारे मख्ते जो खत में लिखकर कभी भेजे थे मैने,

ना जाने किस हाल में होंगे वो खत सारे,

ना जाने वो स्याही उड़ गई है या अब भी कमजोर सी जीने की वजह मांग रही हो जैसे।

कौन जाने की जिन्दा हैं वो सारी गजलें उस कागज के पन्ने पै,

कुछ मालूम नहीं है मुझको लेकिन,

हाँ पर मैं आज भी कभी कभी उन्हें जिन्दा रखने के लिए उन खतों को,

मुसलसल दोबारा लिख लिया करता हूँ। 

तुम्हारे चले जाने के बाद, मैं एक दिन फिर से परांठे वाली गली में,

वो पीली बिल्डिंग के उस कमरे में गया था, जहाँ तुम रहा करती थी,

तुम छोड़ गई थी अपने परफ्यूम की शीशियाँ, तुम्हें याद होगा अगर,

मैं बटोर लाया था उन्हें और कुछ साल तक मेरा कमरा तुम्हारे बदन की खुशबू से रूबरू रहा था,

अब ये खुशबू भी तुम्हारी तरह अनजानी सी हो गई है,

भाग गई हो जैसे कहीं ये कमरा छोड़ कर,

पर अब भी वो शीशियाँ मेरे कमरे में पड़ी हैं

और जब भी दिल करता है खोल कर ढक्कन कोई भी शीशी का

तुम्हारी नरम खुशबू में मदहोश हो लिया करता हूँ।

 


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