बचपन की यादें
बचपन की यादें
कभी छाँव तो कभी धूप ज़िन्दगी
बदले कितने ही रूप ज़िन्दगी,
कभी कौवे की कर्कश वाणी सी
कभी कोयल की कूक ज़िन्दगी।
बचपन के वो खेल-खिलौने
जो जान से प्यारे होते थे
बड़े हुए भूल गए उन्हीं को
जिनके लिए हम रोते थे,
छोटी-छोटी बातों पर
नखरे बड़े दिखाते थे
ज़िद पूरी ना होती
तो बेवजह चिल्लाते थे,
लेकिन अब तो देखो खुद ही,
बन गई है खेल ज़िन्दगी।
कभी छाँव तो कभी धूप ज़िन्दगी
बदले कितने ही रूप ज़िन्दगी,
कभी कौवे की कर्कश वाणी सी
कभी कोयल की कूक ज़िन्दगी।
क्लास में टीचर ना आने पर
मिलकर शोर मचाते थे,
होमवर्क पूरा ना होता
तो कितने बहाने बनाते थे,
कभी सीरियस ना होना
हर पल बस मस्ती करते थे।
कितने प्यारे थे वो दिन
जब स्कूल में हम पढ़ते थे,
खट्टी-मीठी उन यादों की,
बन गई है एक तस्वीर ज़िन्दगी,
कभी छाँव तो कभी धूप ज़िन्दगी।
बदले कितने ही रूप ज़िन्दगी
कभी कौवे की कर्कश वाणी सी
कभी कोयल की कूक ज़िन्दगी।
स्कूल छूटा तो कॉलेज का
नया सफर बड़ा सुहाना था,
साथ में कुछ पागल से
दोस्तों का दोस्ताना था,
पढ़ने-लिखने से कतराते
ना टेस्ट कभी भी देते थे,
पर कॉलेज के हर फंक्शन में
बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे,
इंग्लिश के उन बोरिंग लेक्चर में
कुछ स्टूडेंट्स तो सोते थे,
पर पार्टी करने के लिए
सब बड़े उतावले होते थे,
सर एक ही लाइन को
बार-बार पढ़ाते थे
पर हम जैसे पागल तो
फिर भी समझ ना पाते थे,
कॉलेज के वो सुंदर लम्हें भी
अब ले गई मुझसे छीन ज़िन्दगी,
कभी छाँव तो कभी धूप ज़िन्दगी।
बदलेगी कितने ही रूप ज़िन्दगी,
कभी कौवे की कर्कश वाणी सी
कभी कोयल की कूक ज़िन्दगी।