ख़्वाब
ख़्वाब
लफ्ज़ जहाँ अल्फाजो़ं से सिमट जाते हैं
रास्ते रहबर राहें जिधर मचल जाते हैं
शायरों की अंदाज़ सी, शायरी जहाँ पहल करती है
मंज़िल हमारी वहीं है, ज़हन जहाँ टहल करती है।
बस इतनी होगी दुआ, की हर पल अपना सा लगता हो
मंज़िल खुद की चुनना, ज़रा सपना-सा लगता है
ना हुस्न की चाह, ना अदा ना नजा़कत
चाहत है इतनी, की अपना अक्ल कयामत सा लगता हो।
चमकेंगे एक दिन, बन के सितारा
सब के दिलों में, अरमान ये है
चाहत है अपनी, सूरज बनेंगे
मंज़िल जहाँ भी है, इबादत है।