यतीमखाना
यतीमखाना
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कभी किसी यतीमखाने मे जाकर देखो।
एक रात बगैर घर के
अनजान जगह पर बिताकर देखो।
कीमत पड़ जायेगी मालूम
क्यों गुलिस्ता कहते है घर को।
दो निवाले खा कर देखो,
किसी मजदूर की झोपड़ी मे।
जहाँ पकती है रोटीयाँ।
तवे के बगैर, भूखे पेट पर।
दो गज कपड़े से ढके
नंगे बदन से पूछो,
क्या कीमत है,
गज भर कपड़े की
उसके नंगे बदन के लिये
जो उसकी शर्म हया को
झोंक देता है,
किसी शर्मशार की नजरों से।
रोटी कपड़ा और मकान
की जरूरत पूछ लेना,
उस यतीम से,
जो किसी यतीमखाने की चौकट पर खड़ा
ताकते रहता है,
दूर से किसी आने वाले को।